I would like to share one of my poems -
पूरा हमारा भी कभी अरमान तो हो,
हम पर नसीब तेरा, एहसान तो हो
वादा है हम तहज़ीब से पेश आएंगे,
रू-ब-रू नजम-ओ-ज़ब्त, इंसान तो हो
ज़ाहिर करती है तेरी ये दिखावे की ख़ुशी,
हमारी कामयाबी से कुछ परेशान तो हो
मेरे ज़ख्म देख कर चारागर ने कहा,
दवा तो लगा दूँ, पर कोई निशान तो हो
नेकनामी गर नहीं तो बदनामी ही सही,
ज़माने में मशहूर हमारा नाम तो हो
वाहवाही महफ़िल की तुझे मिलेगी
कभी दमदार तेरा, कोई कलाम तो हो ......